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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास गोग्टाचार्य के शिष्य समुद्रसूरि ने वि० सं० १००६/ई० सन् ९५० में इस पर टिप्पण की रचना की३३ । प्रभावकचरित और प्रबन्धकोश में इन्हें विक्रमादित्य का समकालीन् बतलाया गया है परन्तु वर्तमान युग के विद्वानों ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनका काल विक्रम संवत् की ८वीं९वीं शताब्दी के आस-पास बतलाया है, जो उचित प्रतीत होता है। जिनदत्तसूरि :
महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल के समकालीन वायडगच्छीय आचार्य जिनदत्तसूरि द्वारा प्रणीत विवेकविलास एवं शकुनशास्त्र ये दो कृतियाँ मिलती हैं। विवेकविलास की प्रशस्ति में इन्होंने अपने गुरु-परम्परा के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी है जिसके अनुसार वायडगच्छ में राशिल्लसूरि नामक एक प्रसिद्ध आचार्य हुए । उनके शिष्य एवं पट्टधर जीवदेवसूरि परकायप्रवेशविद्या में निपुण थे। इसी परम्परा में आगे चलकर जिनदत्तसूरि हुए जिन्होंने उक्त ग्रन्थ की रचना की।
प्राकृत भाषा में रचित इस ग्रन्थ में १२ अध्याय हैं जो उल्लास कहे गये हैं। इनमें कुल १३२३ श्लोक हैं । इस कृति में मानव-जीवन के उत्कर्ष के लिये कतिपय आवश्यक सभी तथ्यों का सारगर्भित विवरण है। प्रथम पाँच उल्लासों में दिनचर्या, छठे में ऋतुचर्या, सातवें में वर्षचर्या और आठवें में जन्मचर्या अर्थात् समग्र भव के जीवनव्यवहार का संक्षिप्त विवेचन है। नवें
और दसवें उल्लास में अनुक्रम से पाप और पुण्य के कारकों का विवरण है। ग्यारहवें उल्लास में आध्यात्मिक विचार और ध्यान के स्वरूप का वर्णन है। अंतिम १२वें उल्लास में मृत्यु के समय के कर्तव्य तथा परलोक के साधनों की चर्चा है । कृति के अन्य में १० श्लोकों की प्रशस्ति दी गयी है। यह कृति वि० सं० १२७७/ई० सन् १२२१ में रची गयी मानी जाती है । ब्राह्मणीय परम्परा के प्रसिद्ध ग्रन्थकार माधव (ई० स० की १४वीं शताब्दी) द्वारा प्रणीत सर्वदर्शनसंग्रह में भी आचार्य जिनदत्तसूरि की उक्त कृति का उल्लेख प्राप्त होता है ।
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