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________________ पल्लीवालगच्छ ७८७ महेश्वरसूरि से उनका क्या सम्बन्ध था, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । पल्लीवालगच्छ की द्वितीय पट्टावली में हम देख चुके हैं कि महेश्वरसूरि के पट्टधर के रूप में अभयदेवसूरि का नाम आता है। इस आधार पर इस प्रशस्ति में उल्लिखित अभयदेवसूरि महेश्वरसूरि के शिष्य सिद्ध होते हैं। पल्लीवालगच्छ से संबद्ध अगला साहित्यिक साक्ष्य है वि०सं० १५४४/ ई० स० १४८८ में नन्नसूरि द्वारा रचित सीमंधरजिनस्तवन । यह ३५ गाथाओं में रचित एक लघुकृति है। नन्नसूरि के गुरु कौन थे, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। वि०स० १५७४/ई०स० १५१९ में प्राकृत भाषा में ८८ गाथाओं में रची गई विचारसारप्रकरण की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार महेश्वरसूरि द्वितीय भी पल्लीवालगच्छ के थे। उपासकदशाङ्ग और आचारांग की वि०सं० १५९१-ईस्वीसन् १५३५ में लिखी गई प्रति की पुष्पिकाओं में भी पल्लीवालगच्छ के नायक के रूप में महेश्वरसूरि का नाम मिलता है। _ वि.सं. की १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण में पल्लीवालगच्छ में अजितदेवसूरि नामक एक प्रसिद्ध रचनाकार हो चुके हैं। इनके द्वारा रचित कई कृतियाँ मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं-- १. कल्पसिद्धान्तदीपिका २. पिण्डविशुद्धिदीपिका (वि०सं० १६२७) ३. उत्तराध्ययनसूत्रबालावबोध (वि०सं० १६२९) ४. आचारांगदीपिका ५. आराधना ६. जीवशिखामणाविधि ७. चन्दनबालाबेलि ८. चौबीस जिनावली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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