________________
जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कल्पसिद्धान्तदीपिका की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को महेश्वरसूरि
.९
शिष्य कहा है
७८८
इतिश्री चंद्रगच्छां भोजदिनमणीनां श्रीमहेश्वरसूरिसर्व्वसूरिशिरोमणीनां पट्टे श्री अजितदेवसूरिणा विरचिता श्रीकल्पसिद्धान्तदीपिका समाप्ता । अजितदेवसूरि के शिष्य हीरानन्दसूरि हुए जिनके द्वारा रचित चौबोलीचौपाई नामक कृति प्राप्त होती है । इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपने गुरु- प्रगुरु आदि का उल्लेख किया है।
१०
पालीवाल विरुदे प्रसिद्ध, चंद्रगच्छ सुपहाण । सूरि महेसर पाटधर, तेजै दीपइ भाण ||७|| तासु पसायै हर्षधर, पभणै हीरानंद ॥८॥
चौबोलीचौपाई की वि०सं० १७७० में लिखी गई एक प्रति जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भण्डार, बीकानेर में संरक्षित है । ११
पल्लीवालगच्छ से संबद्ध पर्याप्त संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जो वि०सं० १२५७ से लेकर वि०सं० १६८१ तक के हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org