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________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पल्लीवालगच्छ का उल्लेख करने वाला महत्वपूर्ण साक्ष्य है महेश्वरसूरि द्वारा रचित कालकाचार्यकथा की वि०सं० १३६५ में लिखी गई प्रति की दाताप्रशस्ति, जो इस प्रकार है - इति श्रीपल्लीवालगच्छे श्री महेश्वरसूरिभिर्विरचिता कालिकाचार्य ७८६ कथासमाप्त ॥ श्री पालवंशोऽस्ति विशालकीर्तिः, श्रीशांतिसूरिप्रतिबोधित डीडाकाख्यः । श्रीविक्रमाद्वेदनभर्महर्षिवत्सरै: ( ? ), श्री आदिचैत्यकारापित नवहरे च ॥ १ ॥ स्वश्रेयसे कारितकल्पपुस्तिका ... पुण्योदयरत्नभूमि: । श्रीपल्लिगच्छे स्वगुणौकधाम्ना वाचिता श्रीमहेश्वरसूरिभिः ॥१०॥ नृपविक्रमकालातीत सं० १३६५ वर्षेभाद्रपदवदौ नवम्यां तिथौ श्रीमेदपाटमंडले वऊणाग्रामे कल्पपुस्तिका लिखिता ||छ || उदकानल चौरेभ्यः मूषकेभ्यस्तथैव च । रक्षणीया प्रयत्नेन यत कष्टेन लिख्यते ॥ १ ॥ संवत् १३७८ वर्ष भाद्रपद सुदि ४ श्रावक मोल्हासुतेन भार्याउदयसिरिसमन्वितेन पुत्रसोमा-लाखा-खेतासहितेन श्रावकऊदाकेन श्रीकल्पपुस्तिकां गृहीत्वा श्री अभयदेवसूरीणां समर्पिता वाचिता च । इस प्रशस्ति में रचनाकार ने यद्यपि अपनी गुरु- परम्परा, रचनाकाल आदि का कोई निर्देश नहीं किया है, फिर भी पल्लीवालगच्छ से संबद्ध सबसे प्राचीन साक्ष्य होने इसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। इस प्रशस्ति के अंत में वि०सं० १३७८ में किन्हीं अभयदेवसूरि को पुस्तक समर्पण की बात कही गई है। ये अभयदेवसूरि कौन थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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