________________
पल्लीवालगच्छ
५२.
Jain Education International
५३.
५४.
५५.
५८.
७८५
यशोदेवसूरि (वि०सं० १४८८ में स्वर्गस्थ )
1
नन्नसूरि (वि०सं० १५३२ में स्वर्गस्थ )
T
उद्योतनसूरि (वि०सं० १५७२ में स्वर्गस्थ )
५६. अभयदेवसूरि (वि० सं० १५९५ में स्वर्गस्थ )
(वि०सं०
६०.
T
महेश्वरसूरि (वि०सं० १५९९ में स्वर्गस्थ )
I ५७. आमदेवसूरि (वि० सं० १६३४ में स्वर्गस्थ ) |
शांतिसूरि (वि०सं० १६६१ में स्वर्गस्थ )
T ५९. यशोदेवसूरि (वि० सं० १६९२ में स्वर्गस्थ )
I
नन्नसूरि (वि०सं० १७१८ में स्वर्गस्थ )
६१.
उद्योतनसूरि (वि०सं० १७३७ में स्वर्गस्थ )
इस पट्टावली में ४१ वें पट्टधर महेश्वरसूरि के वि०सं० ११४५ में निधन होने की बात कही गई है। प्रथम पट्टावली में भी महेश्वरसूरि का नाम मिलता है और वि०सं० १९५० में उनके निधन होने की बात कही गई है । इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रभावक आचार्य थे। इसी कारण दोनों पट्टावलियों में न केवल इनका नाम मिलता है, बल्कि इन्हें समसामयिक भी बतलाया गया है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org