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नागेन्द्रगच्छ
७६१ गणि से सहायता प्राप्त हुई । सम्पूर्ण ग्रन्थ ५ प्रकाशों (खण्डों) में विभाजित है। गुजरात के इतिहास का यह एक अपूर्व ग्रन्थ है। जिस प्रकार कल्हण ने राजतरंगिणी में काश्मीर का इतिहास लिखा है उसी प्रकार मेरुतुंग ने अपनी इस कृति में गुजरात के इतिहास का वर्णन किया है। इस ग्रन्थ में वि० सं० ८०२ से लेकर वि० सं० १२५० (कुछ विद्वानों के अनुसार वि० सं० १२७७) तक की घटनाओं का तिथियुक्त वर्णन है किन्तु राजतरंगिणी की तुलना में इस ग्रन्थ में सबसे बड़ा दोष यह है कि लेखक ने अपने समय की घटनाओं का प्रत्यक्ष ज्ञान होते हुए भी उसे पूर्णरूपेण उपेक्षित कर दिया है । साथ ही इसमें विभिन्न राजाओं की दी गयी अधिकांश तिथियाँ प्रायः ठीक नहीं है फिर भी वे कुछ माह या वर्ष से अधिक अशुद्ध नहीं हैं। इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा विस्तृत चर्चा की जा चुकी है।
श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ९, ए० के० मजुमदार तथा कुछ अन्य विद्वानों ने स्थविरावली अपरनाम विचारश्रेणी नामक रचना को भी इसी मेरुतुंग की कृति बतलायाहै । इस कृति में पट्टधर आचार्यों के साथ-साथ चावड़ा, चौलुक्य और वघेल नरेशों की तिथि सहित सूची दी गयी है जो प्रबन्धचिन्तामणि से भिन्न है। चूंकि एक ही ग्रन्थकार अपने दो अलग-अलग ग्रन्थों में समान घटनाओं की अलग-अलग तिथियाँ नहीं दे सकता है, अतः यह सम्भावना बलवती लगती है कि दोनों कृतियों के रचनाकार समान नाम वाले होते हुए भी अलग-अलग व्यक्ति हैं एक नहीं, जैसा कि अनेक विद्वानों ने मान लिया है। विचारश्रेणी में अंचलगच्छ की वीर० सं० १६३९/वि० सं० १२०९ में आर्यरक्षितसूरि से उत्पत्ति बतलायी गयी है । इस गच्छ में भी मेरुतुंग नामक एक प्रसिद्ध आचार्य हो चुके हैं जिनके द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ मिलती हैं और इनका काल वि० सम्वत् की १५वीं शती के प्रथम चरण से लेकर तृतीय चरण तक सुनिश्चित है । इस प्रकार वे प्रबन्धचिन्तामणि के कर्ता से लगभग एक शताब्दी
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