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________________ ७६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रशस्ति के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी विस्तृत गुर्वावली के साथ-साथ रचना-काल और रचना-स्थान का भी उल्लेख किया है जिसका इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। मल्लिषेणसूरि ये वर्धमानसूरि के प्रशिष्य और उदयप्रभसूरि के शिष्य थे । इन्होंने आचार्य हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका नामक कृति पर संस्कृत भाषा में वि० सं० १३४८/ई० सन् १२९३ में स्याद्वादमंजरी नामक टीका की रचना की जिसका संशोधन (खरतरगच्छीय) आचार्य जिनप्रभसूरि ने किया । पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह के अनुसार इन्होंने दिगम्बाराचार्य जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण द्वारा रचित भैरवपद्मावतीकल्प का भी संशोधन किया । लेकिन दिगम्बराचार्य मल्लिषेण द्वारा रचित त्रिशष्टिमहापुराण या महापुराण नामक एक अन्य कृति भी मिलती है जो वि० सं० ११०४/शक सं० ९६८ में रची गयी है। अतः इनका काल विक्रम संवत् की ११वीं शती का अन्त और १२वीं शती का प्रारम्भ सुनिश्चित है। साथ ही उक्त आचार्य कर्णाटक के थे, गुजरात के नहीं । इस आधार पर शाह जी का उपरोक्त मत भ्रामक सिद्ध होता है।७२ स्याद्वादमंजरी की प्रशस्ति में इन्होंने अपने गच्छ की लम्बी गुर्वावली न देते हुए मात्र अपने गुरु उदयप्रभसूरि और ग्रन्थ के रचनाकाल का ही उल्लेख किया है । अतः वर्तमान युग के विभिन्न इतिहासकारों ने केवल गच्छ और नामसाम्य के आधार पर इनके गुरु उदयप्रभसूरि को वस्तुपालतेजपाल के गुरु विजयसेनसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से अभिन्न मान लिया था। परन्तु अब उक्त धारणा निर्मूल सिद्ध हो चुकी है। मेरुतुंगसूरि ये नागेन्द्रगच्छीय चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य थे। इन्होंने बढवाण में रहते हुए वि० सं० १३६१/ई० सन् १३०५ में संस्कृत भाषा में प्रबन्धचिन्तामणि की रचना की । इस कार्य में उन्हें अपने शिष्य गुणचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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