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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास बाद के विद्वान् हैं । इस आधार पर भी यह सुनिश्चित हो जाता है कि प्रबन्धचिन्तामणि और विचारश्रेणी के रचनाकार अलग-अलग व्यक्ति हैं। ___नागेन्द्रगच्छीय मेरुतुंगसूरि द्वारा रचित दूसरी कृती है महापुरुषचरितः । संस्कृत भाषा में निबद्ध इस कृति में ५ सर्ग हैं जिनमें ऋषभ, शान्ति, नेमि, पार्श्व और महावीर इन पाँच तीर्थंकरों का वर्णन है । ग्रन्थ के मंगलाचरण में ग्रन्थकार ने अपने गुरु चन्द्रप्रभसूरि का और अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत प्रथम श्लोक में अपने गच्छ का उल्लेख किया है। सन्दर्भ सूची :१. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, संपा० मुनि दर्शनविजय, वीरमगाम १९३३ ई०
सन्, पृष्ठ ३, ८. २. प्रो० मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा पर आधारित. ३. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृष्ठ ३.
देववाचक की तिथि के लिये द्रष्टव्य - एम० ए० ढांकी 'दत्तिलाचार्य अने भद्राचार्य (गुजराती) स्वाध्याय, जिल्द XVIII, अंक २, बड़ोदरा १९८६ ई० सन्० पृ० १६१. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृ० १३-१४. वही M. A. Dhaky- “The Nagedra gaccha" Dr. H. G. Shastri Felicitation Volume, Ed., P. C. Parikh & others, Ahmedabad 1994, pp. 37-42. पङमचरिउ, संपा० मुनि पुण्यविजय, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, ग्रन्थांक १२,
अहमदाबाद १९६८ ई० सन्, पृ० ५९७-५९८. ९. U. P. Shah, Akota Bronzes, Bombay 1956. A. D. p. 35. १०. Ibid ११. Ibid, p.34. १२. Ibid १३. मुनि पुण्यविजय, "जैन आगमधर और प्राकृत वाङ्मय", ज्ञानाञ्जलि, बड़ोदरा
१९६९ ई० सन्, हिन्दी खण्ड, पृ० ३०-३२.
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