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________________ ७०४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जिनप्रतिमा के प्रतिष्ठापक) नागेन्द्रगच्छ की उपरोक्त उपशाखा और महामात्य वस्तुपाल के गुरु विजयसेनसूरि और उनके शिष्य उदयप्रभसूरि से सम्बद्ध नागेन्द्रगच्छ की उपशाखा के बीच परस्पर क्या सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता। साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा इस गच्छ की एक तीसरी उपशाखा का भी पता चलता है । मुनि धर्मकुमार द्वारा रचित शालिभद्रचरित्र (रचनाकाल वि० सं० १३३४/ई० सन् १२७८) की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरुपरम्परा दी है"३, जो इस प्रकार है - हेमप्रभसूरि धर्मधोषसूरि सोमप्रभसूरि विबुधप्रभसूरि मुनिधर्मकुमार (वि० सं० १३३४/ ई० सन् १२७८ में शालिभद्रचरित्र के रचनाकार) यह उपशाखा भी १२वीं-१३वीं शताब्दी में विद्यमान थी, परन्तु उसका सम्बन्ध पूर्वकथित दो अन्य उपशाखाओं से क्या रहा, इसका पता नहीं चलता। प्रबन्धचिन्तामणि " (रचनाकाल वि० सं० १३६१/ई० सन् १३०५) के रचनाकार मेरुत्तुंगसूरि भी इसी गच्छ के थे। ग्रन्थ की प्रशस्ति में उन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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