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नागेन्द्रगच्छ अपने गच्छ, ग्रन्थ के रचनाकाल के साथ-साथ अपने गुरु चन्द्रप्रभसूरि का भी उल्लेख किया है। लेकिन इसके अतिरिक्त अपने गच्छ की परम्परा के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है।
उत्तरमध्यकाल में भी इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं । इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है -
गुणदेवसूरि के शिष्य गुणरत्नसूरि द्वारा मरु-गुर्जर भाषा में रचित ऋषभरास और भरतबाहुबलिरास ये दो कृतियाँ मिलती हैं। ६ गुणरत्नसूरि के शिष्य सोमरत्नसूरि ने वि० सं० १५२० के आस-पास कामदेवरास की रचना की। इसी प्रकार गुणदेवसूरि के एक अन्य शिष्य ज्ञानसागर द्वारा वि० सं० १५२३/ई० सन् १४६७ में जीवभवस्थितिरास और वि० सं० १५३१/ई० सन् १४७५ में सिद्धचक्रश्रीपालचौपाई की रचना की गयी।
गुणदेवसूरि
गुणरत्नसूरि
ज्ञानसागर (ऋषभरास एवं (वि० सं० १५२३ में भरतबाहुबलिरास जीवभवस्थितिरास के रचनाकार) एवं वि० सं० १५३१
में सिद्धचक्रश्रीपालसोमरत्नसूरि चौपाई के कर्ता) (वि० सं० १५२०
के आसपास कामदेवरास के कर्ता)
अकोटा से प्राप्त धातु की दो जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख को नागेन्द्रकुल का पुरातन अभिलेखीय साक्ष्य माना जा सकता है ।
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