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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास की उपलब्ध प्रति) के रचनाकार महेश्वरसूरि को समसामयिकता, नामसाम्य आदि को दृष्टिगत रखते हुए एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक यही बात अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात नन्नसूरि (वि०सं० १५२८-१५३०) और सीमंधरजिनस्तवन (रचनाकाल वि०सं० १५४४-ई० सन् १४८८) के रचनाकार नन्नसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार वि० सं० १५७३/ई०स० १५२४ में विचारसारप्रकरण के रचनाकार महेश्वरसूरि और वि०सं० १५७५-१५९३ के मध्य विभिन्न जिनप्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक महेश्वरसूरि 'द्वितीय' भी एक ही व्यक्ति मालूम पड़ते हैं। जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं, अजितदेवसूरि ने भी अपनी कृतियों में स्वयं को महेश्वरसूरि का शिष्य बताया है, जिन्हें महेश्वरसूरि ‘द्वितीय' से अभिन्न माना जा सकता है।
साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पल्लीवालगच्छीय मुनिजनों की गुरु-परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है -
महेश्वरसूरि प्रथम (वि०सं० १३४५-१३६१)
प्रतिमा लेख कालकाचार्यकथा के
रचनाकार अभयदेवसूरि (वि०सं० १३८३-१४०९)
प्रतिमा लेख (कालकाचार्यकथा की वि०सं० १३६५/ई०स० १३०९ में लिखी गई प्रति वि०सं०१३७८-ई०स० १३२२
में इन्हें समर्पित की गई) आमसूरि (वि०सं० १४३५)
प्रतिमालेख
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