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________________ नागेन्द्रगच्छ वर्धमानसूरि (द्वितीय) (वि० सं० १२९९ / ई० सन् १२४३ में वासुपूज्यचरित के रचनाकार) अजाहरा पार्श्वनाथ जिनालय के निकट से कुछ साल पूर्व धातु की कुछ भूमिगत जिन - प्रतिमायें प्राप्त हुई थीं । इस संग्रह में शीतलनाथ की भी एक सलेख प्रतिमा है, जिस पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार नागेन्द्रगच्छीय विजयसिंहसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि ने वि० सं० १३०५ / ई० सन् १२४४ में इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी। श्री शिवनारायण पाण्डेय ने इस प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख की वाचना दी है३४ जिसे प्राध्यापक मधुसूदन ढांकी ने संशोधन के साथ प्रस्तुत किया है ३५ जो इस प्रकार है - संवत् १३०५ ज्येष्ठ वदि ८ शने श्री प्राग्वाटान्वये विवरदेव मंत्रिणी महाणु श्रेयोऽर्थं सुतमण्डलिकेन श्री शीतलनाथ बिबं कारितं श्रीनागेन्द्रगच्छे श्रीवीरसूरि संताने श्रीविजयसिंहसूरिशिष्यैः श्रीवर्धमानसूरिभिः प्र (ति) ष्ठितम् ॥ ७०१ ३७ ये वर्धमानसूरि वासुपूज्यचरित के कर्ता से अनन्य मालूम होते हैं । वासुपूज्यचरित की प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुर्वावली के साथ-साथ अपने एक शिष्य उदयप्रभसूरि का भी नाम दिया है । ३६ वि० सं० १३३०/ई० सन् १२७४ के गिरनार के लेख में भीं किन्हीं उदयप्रभसूरि का नाम मिलता है । यद्यपि इस लेख में उक्त सूरि के गच्छ, गुरु आदि के नाम का उल्लेख नहीं है किन्तु इस काल में नागेन्द्रगच्छ को छोड़कर किसी अन्य गच्छ में उक्त नाम के कोई अन्य मुनि नहीं हुए हैं । अत: इन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर नागेन्द्रगच्छीय वर्धमानसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। ३८ इसी प्रकार वि० सं० १३३८ / ई० सन् १२८२ में प्रतिष्ठापित और वर्तमान में मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, बड़ोदरा में संरक्षित धातु की एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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