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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चौबीसी जिन-प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में उल्लिखित प्रतिमा प्रतिष्ठापक नागेन्द्रगच्छीय महेन्द्रसूरि के गुरु उदयप्रभसूरि समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर पूर्वोक्त वर्धमानसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं । स्याद्वादमंजरी (रचनाकाल वि० सं० १३४८/ई० सन् १२४२) के कर्ता मल्लिषेणसूरि ने भी अपने गुरु का नाम नागेन्द्रगच्छीय उदयप्रभसूरि बतलाया है जिन्हें प्रायः सभी विद्वान् वस्तुपाल-तेजपाल के गुरु विजयसेनसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से अभिन्न मानते हैं किन्तु प्राध्यापक ढांकी ने सटीक प्रमाणों के आधार पर मल्लिषेणसूरि को उपरोक्त वर्धमानसूरि के शिष्य उदयप्रभसूरि से भिन्न सिद्ध किया है। इस प्रकार उक्त उदयप्रभसूरि के दो शिष्यों का भी पता चलता है। साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर नागेन्द्रगच्छ के इस शाखा की गुरुशिष्य परम्परा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार
वीरसूरि
वर्धमानसूरि (प्रथम)
रामसूरि
चन्द्रसूरि
देवसूरी
अभयदेवसूरि
धनेश्वरसूरि
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