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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
९-१०.मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग१, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपादक, डा० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ ई० स०, पृष्ठ ३७६-३७७.
११. उवझाय भावक कहि, रखे कोइनि हिणंति ।
शिष्य ज लख्यमीसागरह, कारण करिउ प्रबंध ॥
१२.
वही, भाग १, पृष्ठ ३७९.
Vidhartri Vora, Ed. Catalogue of Gujarati Manuscripts: Muni Shree Punyavijayaji's Collection, L.D. Series No. 71 Ahmedabad 1978 A.D. p. 641.
१३. मुनि कांतिसागर, संपा०, शत्रुंजयवैभव, कुशल संस्थान, पुष्प१, जयपुर १९९० ई०, लेखांक २७३.
१४. संवत् १६१० वर्षे श्री बृहद्ब्रह्माणीयागच्छे भट्टारक श्री ५ श्री गुणसुन्दरसूरि शिष्य गणि नयकुंजर लषतं श्रीमोहणग्रामे फागुण वदि ५ शुक्रवासरे ॥ युगादिदेवस्तवनम् की प्रतिलेखनप्रशस्ति
श्री अमृतलाल मगनलाल शाह, पूर्वोक्त, भाग २, पृष्ठ १०९.
१५. अरविन्द कुमार सिंह, चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर का तीन जैन प्रतिमा लेख Aspects of Jainology, Vol. III, Ed. M. A. Dhaky and S.M. Jain, Varanasi 1991 A.D., Pp. 172-173.
१६. संवत् १४४६ वर्षे वैशाख वदि ११ बुधे ब्रह्माणगच्छीय भट्टारक श्रीमदनप्रसूरि पट्टे श्रीनंदीश्वरसूरि पट्टे श्रीविजयसेनसूरि पट्टे श्रीरलाकरसूरिपट्टे श्रीहेमतिलक सूरिभिः पूर्वं गुरु श्रेयार्थं रंगमंडप : कारापितः ॥ पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९६८ ।
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