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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास श्रीसंगमसिद्धमुनिविद्याध () रकुलनभस्थलमृगांकः । दिवसैश्चतुर्भिरधिकं मासमुपोष्याचलितसत्व ॥ २ ॥ वर्षे सहस्त्रे षष्टयां चतुरन्वितयाधिके दिवमगच्छत् । () सोमदिने आग्रहायणमासे कृष्णद्वितीयायां ॥ ३ ॥ अम्मेयकः शुभं तस्य श्रेष्ठिरोधेयकात्मजः । पुंडरीकपदासंगि चैत्यमेतदचीकरत् ॥ ४ ॥
वि० सं० १२५४ /ई० स० ११९८ में जालिहरगच्छीय देवप्रभसूरि द्वारा रचित पद्मप्रभचरित की प्रशस्ति के अनुसार काशहद और जालिहरगच्छों का उद्भव विद्याधरकुल से बतलाया गया है।१४
_ विद्याधरगच्छ से संबद्ध कुछ अन्य अभिलेखीय साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं जो वि० सं० १४०८ से लेकर वि० सं०.१५३४ तक के हैं। इनका विवरण इस प्रकार है।
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