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________________ पूर्णिमागच्छ ९५१ इस प्रकार पुण्यरत्नसूरि का गुणसमुद्रसूरि और सुमतिप्रभसूरि दोनों के पट्टधर के रूप में उल्लेख मिलता है । ऐसा प्रतीत होता है कि सुमतिप्रभसूरि और पुण्यरत्नसूरि दोनों परस्पर गुरुभ्राता थे और इन दोनों मुनिजनों के गुरु थे गुणसमुद्रसूरि । गुणसमुद्रसूरि के पश्चात् उनके शिष्य सुमतिप्रभसूरि उनके पट्टधर बने और सुमतिप्रभसूरि के पट्टधर उनके कनिष्ठ गुरुभ्राता पुण्यरत्नसूरि हुए । इसीलिये गुणसमुद्रसूरि और सुमतिप्रभसूरि दोनों के पट्टधर के रूप में पुण्यरत्नसूरि का उल्लेख मिलता है । उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की जो छोटी-छोटी गुर्वावली प्राप्त होती है उन्हें इस प्रकार समायोजित किया जा सकता है : हेमरत्नसूर [वि०सं० १४८६ ] सुमतिप्रभसूरि [मुख्यपट्टधर] Jain Education International तालिका २ सर्वाणंदसूर I गुणसागरसूरि | [वि०सं० १४८० - १४८५ ] [वि० सं० १४८३ - १५११] गुणसमुद्रसूरि [वि० सं० १४९२ - १५१२] पुण्यरत्नसूरि [पट्टधर] [वि०सं० १५१२ १५३४] प्रतिमालेख For Private & Personal Use Only गुणधीरसूरि [शिष्यपट्टधर] [वि०सं० १५१६ १५३६] प्रतिमालेख www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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