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पूर्णिमागच्छ
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इस प्रकार पुण्यरत्नसूरि का गुणसमुद्रसूरि और सुमतिप्रभसूरि दोनों के पट्टधर के रूप में उल्लेख मिलता है । ऐसा प्रतीत होता है कि सुमतिप्रभसूरि और पुण्यरत्नसूरि दोनों परस्पर गुरुभ्राता थे और इन दोनों मुनिजनों के गुरु थे गुणसमुद्रसूरि । गुणसमुद्रसूरि के पश्चात् उनके शिष्य सुमतिप्रभसूरि उनके पट्टधर बने और सुमतिप्रभसूरि के पट्टधर उनके कनिष्ठ गुरुभ्राता पुण्यरत्नसूरि हुए । इसीलिये गुणसमुद्रसूरि और सुमतिप्रभसूरि दोनों के पट्टधर के रूप में पुण्यरत्नसूरि का उल्लेख मिलता है ।
उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की जो छोटी-छोटी गुर्वावली प्राप्त होती है उन्हें इस प्रकार समायोजित किया जा सकता है :
हेमरत्नसूर [वि०सं० १४८६ ]
सुमतिप्रभसूरि [मुख्यपट्टधर]
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तालिका २
सर्वाणंदसूर
I गुणसागरसूरि |
[वि०सं० १४८० - १४८५ ]
[वि० सं० १४८३ - १५११]
गुणसमुद्रसूरि
[वि० सं० १४९२ - १५१२]
पुण्यरत्नसूरि
[पट्टधर]
[वि०सं० १५१२
१५३४] प्रतिमालेख
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गुणधीरसूरि [शिष्यपट्टधर] [वि०सं० १५१६
१५३६] प्रतिमालेख
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