________________
८३० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इनके द्वारा रचित शालिभद्रचौढालिया ( रचनाकाल वि०सं० १७२१/ ई० सन् १६६५) नामक एक कृति प्राप्त होती है । इनके पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि और मुनिचन्द्रसूरि के नेमिचन्द्रसूरि हुए, जिनकी वि०सं० १७९८ में बीकानेर के श्रीसंघ ने चरणपादुका स्थापित करायी २२ । मुनिचन्द्रसूरि के पट्टधर कनकचन्द्रसूरि हुए जिनका नाम वि०सं० १८३२/ ई० सन् १७७६ में प्रतिलिपि की गयी श्रीपालकथाटब्बा की दाता प्रशस्ति में भी मिलता है । २३ जैसा कि पट्टावलियों में ऊपर हम देख चुके हैं कनकचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में शिवचन्द्रसूरि का नाम मिलता है । इनके द्वारा वि०सं० १८१५ में अपने गुरु कनकचन्द्रसूरि की चरणपादुका स्थापित करायी गयी ।
२४
संवत् १८१५ वर्षे मासोत्तम श्री फाल्गुनमासे कृष्ण पक्षे षष्टी तिथौ रविवारे श्रीपूज्य श्रीकनकचंद्रसूरिणां पादुका कारापिता च भट्टारक श्रीशिवचंद्रसूरिश्वरैः
कनकचंद्रसूरि के एक अन्य शिष्य वक्तचन्द्र हुए जिनके एक शिष्य सागरचन्द्र ने वि० सं० १८८४ में अपने गुरु की चरणपादुका स्थापित करायी। २५
संवत १८८४ मिति जेठ सुदि ६ शुक्रवारे भट्टारक श्री १०८ श्री कनकचंद्रसूरिजी संतानीय पं० श्रीवक्तचंदजीकानां पादुका प्रतिष्ठापिता श्री बीकानेर नगरे |
पट्टावलियों में उल्लिखित शिवचन्द्रसूरि के पट्टधर भानुचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर विवेकचंद्रसूरि के बारे में किन्हीं अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । प्रायः यही बात विवेकचन्द्रसूरि के पट्टधर लब्धिचंद्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इनके पट्टधर हर्षचन्द्रसूरि हुए, जो अपने समय के प्रभावशाली आचार्य थे। इनके द्वारा रचित चौबीसजिनपूजा नामक कृति प्राप्त होती है । २६ वि०सं० १९०२ में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org