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पार्श्वचन्द्रगच्छ
८३१ इन्होंने अपने गुरु लब्धिचंद्रसूरि की चरणपादुका स्थापित की । ___ संवत् १९०२ शाके १९६७ प्रा मासोत्तमे आषाढ़ मासे कृष्णपक्षे ८ अष्टम्यां तिथौ शुक्रवासरे श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिगच्छाधिराज भट्टारकोत्तम भट्टारक पुरन्दर भट्टाराकाणां श्री १०८ श्री श्री श्री लब्धिचंद्रसूरिश्वराणं पादुके प्रतिष्ठापिता तंच्छिष्य भट्टारकोत्तम भट्टारक श्रीहर्षचन्द्रसूरि जिद्भि श्रीरस्तुतराम्।
वि०सं० १९०९ में अन्तरंगकुटुम्बकबीलाचौढालिया के रचनाकार वीरचन्द्र भी हर्षचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और मुनि इन्द्रचन्द्र के शिष्य थे ।२८ जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं पट्टावलियों में हर्षचन्द्रसूरि के दो अलगअलग शिष्यों हेमचन्द्रसूरि और मुक्तिचन्द्रसूरि का नाम मिलता है और इन दोनों मुनिजनों के पट्टधर के रूप में भ्रातृचन्द्रसूरि का । भ्रातृचन्द्रसूरि के दो शिष्य सागरचन्द्र और देवचन्द्र हुए । इनका पट्टावलियों में ऊपर नाम आ चुका है। सागरचन्द्रसूरि के पट्टधर उनके शिष्य मुनि वृद्धिचन्द्र हुए । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पट्टावलियों से जहाँ इस गच्छ के केवल पट्टधर आचार्यों के नाम ज्ञात हो जाते हैं । यह बात सभी गच्छों के इतिहास के अध्ययन के संदर्भ में प्रायः समान रूप से कही जा सकती है । उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की एक विस्तृत तालिका निर्मित की जा सकती है, इस प्रकार है :
द्रष्टव्य - तालिका क्रमांक ७
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