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________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ ४. गुणसुन्दरसूरि के पट्टधर गुणनिधानसूरि ८ प्रतिमालेख (वि० सं० १५२९-१५३६) ५. गुणनिधानसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि २ प्रतिमालेख (वि० सं० १४४३-१५४६) ६. गुणसागरसूरि के शिष्य (?) लक्ष्मीसागरसूरि ६ प्रतिमालेख (वि० सं० १५४९-१५७२) मलधारी गुणसुन्दरसूरि के शिष्य सर्वसुन्दरसूरि ने वि० सं० १५१० / ईस्वी सन् १४५४ में हंसराजवत्सराजचौपाई की रचना की । यह इस गच्छ से सम्बद्ध विक्रम सम्वत् की १६वीं शती का एकमात्र साहित्यिक साक्ष्य माना जा सकता है। जैसा कि अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत हम देख चुके हैं वि० सं० १४९७ से वि० सं० १५२९ तक के ४३ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में गुणसुन्दरसूरि का नाम मिलता है । हंसराजवत्सराजचौपाई के रचनाकार सर्वसुन्दरसूरि ने भी अपने गुरु का यही नाम दिया है, अत: समसामयिकता के आधार पर दोनों साक्ष्यों में उल्लिखित गुणसुन्दरसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। वि० सं० की १५वीं शती के उत्तरार्ध और १६वीं शती तक के इस गच्छ से सम्बन्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर गुरु - शिष्य परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार है : - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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