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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वि० सं० १५३६ ज्येष्ठ सुदि ५ रविवार १७ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ का नवीन जिनालय, जयपुर वि० सं० १५४५ ज्येष्ठ सुदि १२ गुरुवार १८
आदिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - गौड़ीजी का मंदिर, उदयपुर
शालिसूरि (चतुर्थ) के पट्टधर सुमतिसूरि (चतुर्थ) हुए, जिनके द्वारा वि० सं० १५४५ से १५५९ तक प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमायें; इनके शिष्य एवं पट्टधर शांतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा वि० सं० १५५२ से वि० सं० १५७२ तक की जिन प्रतिमायें और शांतिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य ईश्वरसूरि (पंचम) द्वारा प्रतिष्ठापित वि० सं० १५६० से १५९७ तक की जिन प्रतिमायें उपलब्ध हैं, अर्थात् विक्रम सम्वत् की सोलहवीं शती के छठे दशक में सुमतिसूरि (चतुर्थ), शांतिसूरि (चतुर्थ) और ईश्वरसूरि (पंचम) ये तीनों आचार्य विद्यमान थे। इससे प्रतीत होता है कि ये तीनों आचार्य शालिसूरि (चतुर्थ) के शिष्य और परस्पर गुरुभ्राता थे। ज्येष्ठताक्रम से इनका पट्टधर नाम निर्धारित हुआ होगा ऐसा प्रतीत होता है। शालिसूरि के पश्चात् ये क्रम से गच्छनायक के पद पर प्रतिष्ठित हुए । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण अभिलेखों का विवरण इस प्रकार है -
सुमतिसूरि (चतुर्थ) द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण
वि० सं० १५४७ माघ सुदि १२ रविवार १९ वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - शत्रुञ्जय वि० सं० १५४९ ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवार१२०
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