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________________ ९९४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास तेरहवीं शती का द्वितीयचरण [वि० सं० १२५२] सुनिश्चित है, अतः यही समय सुरप्रभसूरि का भी माना जा सकता है। सुरप्रभसूरि से जयसिंहसूरि तक २५० वर्षों की अवधि तक १० आचार्यों का नायकत्व काल असंभव नहीं लगता । इस आधार पर सुरप्रभसूरि से जयसिंहसूरि तक की गुरुपरम्परा, जो पट्टावली में दी गयी है, प्रामाणिक मानी जा सकती है। इसी प्रकार जयसिंहसूरि और उनके पट्टधर जयप्रभसूरि से लेकर भावप्रभसूरि तक जिन ९ आचार्यों का नाम पट्टावली में आया है, वे सभी पुस्तकप्रशस्तियों द्वारा निर्मित पट्टावली में आ चुके हैं। इस प्रकार श्री देसाई द्वारा प्रस्तुत पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा की एक मात्र उपलब्ध पट्टावली प्रामाणिक सिद्ध होती है। ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छ प्रधानशाखा की गुरु-परम्परा की तालिका जयसिंहसूरि से प्रारम्भ होती है और जयसिंहसूरि के पूर्ववर्ती आचार्यों के नाम एवं पट्टानुक्रम श्री देसाई द्वारा प्रस्तुत पट्टावली से ज्ञात हो जाते हैं, अतः इस शाखा की गुरु-परम्परा की एक विस्तृत तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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