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________________ पूर्णतल्लगच्छ ई० सन् १०९० में मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति के रचनाकार] अशोकचन्द्र [मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति की रचना में अपने गुरु के सहायक] ___ आचार्य देवचन्द्रसूरि की दूसरी कृति है शांतिनाथचरित जो प्राकृत भाषा में वि० सं० ११६० / ईस्वी सन् ११०४ में रची गयी है। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी संक्षिप्त गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : यशोभद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि गुणसेनसूरि देवचन्द्रसूरि [वि० सं० ११६० / ईस्वी सन् ११०४ में खंभात में शांतिनाथचरित के रचनाकार] महावीरचरित- आचार्य देवचन्द्रसूरि के शिष्य कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का १०वां पर्व महावीरचरित्र के रूप में है। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने भी संक्षिप्त रूप से अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है : यशोभद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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