________________
जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
मूलशुद्धिप्रकरणसटीक - पूर्णतल्लगच्छीय प्रद्युम्नसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में रची गयी कृति मूलशुद्धिप्रकरण पर उनके प्रशिष्य देवचन्द्रसूरि ने वि० सं० १९४६ / ई० सन् १०९० में वृत्ति की रचना की, जिसकी प्रशस्ति' में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का विवरण दिया है । इसके अनुसार चन्द्रकुल के अन्तर्गत पूर्णतल्लगच्छ में आम्रदेवसूरि नामक आचार्य
हुए । उनके शिष्य का नाम श्रीदत्तगणि था, जिनके शिष्य यशोभद्रसूरि हुए; जिन्होंने उज्जयन्तगिरि पर सल्लेखनापूर्वक शरीर त्याग किया। उनके पट्टधर प्रद्युम्नसूरि हुए, जिन्होंने मूलशुद्धिप्रकरण अपरनाम स्थानकप्रकरण का निर्माण किया। उनके शिष्य गुणसेनसूरि थे, जिनके पट्टधर देवचन्द्रसूरि ने वि० सं० ११४६ / ई. सन् १०९० में मूलशुद्धिप्रकरणवृत्ति की रचना की । इस कार्य में उन्हें अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता अभयदेवसूरि तथा अपने शिष्य अशोकचन्द्र से सहायता प्राप्त हुई ।
इसे तालिका के रूप में इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है :
आम्रदेवसूरि
९१२
Jain Education International
|
श्रीदत्तगणि
'
यशोभद्रसूरि [ उर्ज्जयन्तगिरि पर समाधिमरण]
देवचन्द्रसूरि [वि० सं० १९४६ /
1
प्रद्युम्नसूरि [ मूलशुद्धिप्रकरण अपरनाम
स्थानकप्रकरण के रचनाकार ]
1
गुणसेनसूरि
अभयदेवसूरि
[वृत्तिलेखन में सहायक]
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org