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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १५१७-१५४६-प्रतिमालेख) और तालध्वजीयाशाखा के गुणसागरसूरि (वि०सं० १५२८-प्रतिमालेख) को समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती । ठीक इसी प्रकार तालध्वजीयाशाखा के शांतिसूरि (वि०सं० १५५९-प्रतिमालेख)
और पिप्पलगच्छीय शांतिप्रभसूरि (वि०सं० १५५४-प्रतिमालेख) को एक ही व्यक्ति माना जा सकता है।
इसी प्रकार लेख के प्रारम्भ में साहित्यिक साक्ष्यों में उल्लिखित कालकसूरिभास (रचनाकाल वि०सं० १५१४/ई०सन् १४५७) और कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार पिप्पलगच्छीय आनन्दमेरु१५ के गुरु गुणरत्नसूरि भी समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर तालध्वजीयाशाखा के ही गुणसागरसूरि (वि०सं० १५१७-१५४६प्रतिमालेख) के गुरु गुणरत्नसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। ठीक यही बात पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास (रचनाकाल वि०सं० १५८४/ई०सन् १५२८) के रचनाकार पिप्पलगच्छीय नरशेखरसूरि और उनके गुरु शांति (प्रभ) सूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह निम्नानुसार
शांतिसूरि
गुणरत्नसूरि
आनन्दमेरु
गुणसागरसूरि
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