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पिप्पलगच्छ
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वि०सं० १५२८ और वि०सं० १५५९ के प्रतिमालेखों में पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा का उल्लेख मिलता है । सम्भवत: सौराष्ट्र में स्थित ताजा नामक स्थान से यह शाखा अस्तित्व में आयी हो। इन प्रतिमालेखों का विवरण इस प्रकार है :
१. सं० १५२८ वर्षे वैशाष (ख) विदि (वदि) सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० सामल भार्या वान्ह सुत सं० हासाकेन भार्या वीजू द्वितीय भार्या सहिजलदे सुत समधर कीका युतेन श्रीचन्द्रप्रभ- चतुर्विंशतिपट्ट (:) कारित: प्र० पिप्पलगच्छे तालध्वजीय श्रीगुणरत्नसूरिपट्टे पू० श्रीगुणसागरसूरिभिः घोघा वास्तव्य श्रीः ।
विजयधर्मसूरि - सम्पा०, प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४१६
२. सं० १५५९ फागुण सुदि ७ दिने श्रीश्रीमालज्ञातीय साहमाणिकभा० अपूरवपु० भाइआकेन स्वमातृपित्रोः श्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंब कारितं तलाझीआ श्रीशांतिसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
बुद्धिसागरसूरि - सम्पा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग - २. लेखांक
३०२
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प्रथम लेख में गुणरत्नसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है । पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों के आधार पर पूर्वप्रदर्शित आचार्य परम्परा की छोटी-छोटी तालिकाओं में से एक में गुणरत्नसूरि के शिष्य गुणसागरसूरि का नाम आ चुका है।
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शांतिसूर
I
गुणरत्नसूरि
(वि० सं० १५०७ - १५१७)
प्रतिमालेख
(वि० सं० १५१७- १५४६) प्रतिमालेख
अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित पिप्पलगच्छीय गुणसागरसूरि (वि०सं०
1 गुणसागरसूरि
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