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________________ पिप्पलगच्छ ९०५ वि०सं० १५२८ और वि०सं० १५५९ के प्रतिमालेखों में पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा का उल्लेख मिलता है । सम्भवत: सौराष्ट्र में स्थित ताजा नामक स्थान से यह शाखा अस्तित्व में आयी हो। इन प्रतिमालेखों का विवरण इस प्रकार है : १. सं० १५२८ वर्षे वैशाष (ख) विदि (वदि) सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० सामल भार्या वान्ह सुत सं० हासाकेन भार्या वीजू द्वितीय भार्या सहिजलदे सुत समधर कीका युतेन श्रीचन्द्रप्रभ- चतुर्विंशतिपट्ट (:) कारित: प्र० पिप्पलगच्छे तालध्वजीय श्रीगुणरत्नसूरिपट्टे पू० श्रीगुणसागरसूरिभिः घोघा वास्तव्य श्रीः । विजयधर्मसूरि - सम्पा०, प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४१६ २. सं० १५५९ फागुण सुदि ७ दिने श्रीश्रीमालज्ञातीय साहमाणिकभा० अपूरवपु० भाइआकेन स्वमातृपित्रोः श्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंब कारितं तलाझीआ श्रीशांतिसूरिभिः प्रतिष्ठितं । बुद्धिसागरसूरि - सम्पा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग - २. लेखांक ३०२ -- प्रथम लेख में गुणरत्नसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है । पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों के आधार पर पूर्वप्रदर्शित आचार्य परम्परा की छोटी-छोटी तालिकाओं में से एक में गुणरत्नसूरि के शिष्य गुणसागरसूरि का नाम आ चुका है। Jain Education International शांतिसूर I गुणरत्नसूरि (वि० सं० १५०७ - १५१७) प्रतिमालेख (वि० सं० १५१७- १५४६) प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित पिप्पलगच्छीय गुणसागरसूरि (वि०सं० 1 गुणसागरसूरि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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