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________________ पिप्पलगच्छ (वि०सं० १५१३ में कालकसूरिभास तथा कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार (वि०सं० १५१७-१५४६) प्रतिमालेख शांतिप्रभसूरि रचनाकार) (वि०सं० १५५४-१५५९) प्रतिमालेख नरशेखरसूरि (वि०सं० १५८४ में पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास के रचनाकार) पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। जहाँ तक पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति में वडगच्छीय शांतिसूरि द्वारा विजयसिंहसूरि आदि ८ शिष्यों को पीपलवृक्ष के नीचे आचार्यपद देने और इस प्रकार पिप्पलगच्छ के अस्तित्व में आने के विवरण की प्रामाणिकता का प्रश्न है और यह सत्य है कि वडगच्छ में शांतिसूरि और उनके शिष्य विजयसिंहसूरि हुए और उनके द्वारा क्रमशः रचित पृथ्वीचंद्रचरित" (रचनाकाल वि०सं० ११६१/ई० सन् ११०५) और श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी (रचनाकाल वि०सं० ११८३/ई०सन् ११२६) उपलब्ध हैं किन्तु इनकी प्रशस्ति में इन्हें कहीं भी पिप्पलगच्छीय नहीं कहा गया है। चूंकि किसी भी गच्छ की अवान्तर शाखायें अपने उत्पत्ति के एक-दो पीढ़ी बाद ही नामविशेष से प्रसिद्ध होती हैं अतः उक्त गुर्वावली के उपरकथित विवरण को प्रामाणिक माना जा सकता है। जैसा कि पीछे कहा जा चुका है पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य वि०सं० १२९१ का है किन्तु वि०सं० १४६५ में एक प्रतिमालेख से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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