SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ज्ञात होता है कि वि०सं० १२०८ में वीरस्वामी की एक प्रतिमा को इस गच्छ के विजयसिंहसूरि ने डीडिला नामक ग्राम में स्थापित की थी। यदि इस विवरण को सत्य मानें तो वि०सं० १२०८ में इस गच्छ का अस्तित्त्व भी मानना पड़ेगा और ऐसी स्थिति में श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी के रचनाकार विजयसिंहसूरि और वि०सं० १२०८ में प्रतिमाप्रतिष्ठापक विजयसिंहसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं । इसप्रकार यह माना जा सकता है कि विक्रम सम्वत् की तेरहवीं शती के प्रारम्भिक दशक में बृहद्गच्छ की एक शाखा के रूप में यह अस्तित्त्व में आ चुकी थी और तेरहवी शताब्दी के उत्तरार्ध में पिप्पलगच्छ के रूप में इसका नामकरण हुआ होगा। पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों से यद्यपि इस गच्छ के अनेक मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं किन्तु उनमें से कुछ को छोड़कर शेष मुनिजनों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती, फिर भी इतना स्पष्ट है कि धर्मघोषगच्छ, पूर्णिमागच्छ, चैत्रगच्छ आदि की भाँति पिप्पलगच्छ भी १६वीं शती तक विशेष प्रभावशाली रहा । १७वीं-१८वीं शताब्दी से अमूर्तिपूजक स्थानकवासी सम्प्रदाय के उदय और उसके बढ़ते हुए प्रभाव के कारण खरतरगच्छ, तपागच्छ और अंचलगच्छ को छोड़कर शेष अन्य मूर्तिपूजक गच्छों का महत्त्व क्षीण होने लगा और इनके अनुयायी ऐसी परिस्थिति में उक्त तीनों प्रभावशाली मूर्तिपूजक गच्छों में या स्थानकवासी परम्परा में सम्मिलित हो गये होंगे। सन्दर्भ : श्रीमत्यर्बुदतुंगशैलशिखरच्छायाप्रतिष्ठास्पदे, धर्माणाभिधसन्निवेशविषये न्यग्रोधवृक्षो बभौ । यत्शाखाशतसंख्यपत्रबहलच्छायास्वपायाहतं, सौख्येनोषितसंघमुख्यशटकश्रेणीशतीपंचकम् ॥१॥ लग्ने क्वापि समस्तकार्यजनके सप्तग्रहालोकेन, ज्ञात्वा ज्ञानवशाद् गुरुं......देवाभिधः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy