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________________ १२४० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास गच्छ के प्रारम्भिक आचार्यों के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होती है । संडेरगच्छीय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं। इनमें से अधिकांश प्रतिमायें लेखयुक्त हैं। पट्टावलियों की अपेक्षा ग्रन्थ एवं पुस्तक प्रशस्तियाँ और प्रतिमालेख समसामयिक होने से ज्यादा प्रामाणिक हैं । यहां इन्ही आधारों पर संडेरगच्छ के इतिहास पर प्रकाश डाला गया है। इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है - साहित्यिकसाक्ष्य षड्विधावश्यकविवरण की दाता प्रशस्ति' (लेखनकाल वि० सं० १२९५ / ई० सन् १२२९) इस ग्रन्थ की दाता प्रशस्ति में सौवर्णिक पल्लीवालज्ञातीय श्रावक तेजपाल द्वारा षड्विधावश्यकविवरण (आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित योगशास्त्र का एक अध्याय) की प्रतिलिपि संडेरगच्छीय गणि आसचन्द्र के शिष्य पंडित गुणाकर को दान में देने का उल्लेख है। परन्तु गणि आसचन्द्र संडेरगच्छ के किस आचार्य के शिष्य थे, यह ज्ञात नहीं होता है। संडेरगच्छ का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है, इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है। त्रिष्टिशलाकापुरुषचरित्र के अन्तर्गत महावीरचरित्र की दाता प्रशस्ति (लेखन काल वि० सं० १३२४/ई० सन् १२६७) इस प्रशस्ति में यशोभद्रसूरि का महान् प्रभावक आचार्य के रूप में उल्लेख है। यह प्रशस्ति खंडित है; अतः इसमें यशोभद्रसूरि के बाद के आचार्य का नाम (जो शालिसूरि होना चाहिए) नहीं मिलता, फिर आगे सुमतिसूरि का नाम आता है और इन्हें दशवैकालिकटीका का रचयिता बताया गया है। इनके पश्चात् शान्तिसूरि और फिर ईश्वरसूरि के नाम आते हैं। प्रशस्ति में आगे दाता श्रावक परिवार की विस्तृत वंशावली दी गयी है। इसी श्रावक परिवार के एक सदस्य द्वारा कल्पसूत्र एवं कालकाचार्यकथा की प्रतिलिपि करायी गयी। यद्यपि इनकी दाताप्रशस्ति में रचनाकाल नहीं दिया गया है, फिर भी इस प्रशस्ति को लिखवाने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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