________________
संडेरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
पूर्वमध्यकाल में पश्चिमी भारत में निर्ग्रन्थ श्वेताम्बर श्रमण संघ की विभिन्न गच्छों के रूप में विभाजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। कुछ गच्छों का नामकरण विभिन्न नगरों के नाम के आधार पर हुआ, जैसे कोरंट (वर्तमान कोटा) से कोरंट गच्छ, नाणा (वर्तमान नाना) से नाणकीय गच्छ, ब्रह्माण (वर्तमान वरमाण) से ब्रह्माणगच्छ, संडेर (वर्तमान सांडेराव) से संडेरगच्छ, पल्ली (वर्तमान पाली) से पल्लीवालगच्छ, उपकेशपुर (वर्तमान ओसिया) से उपकेशगच्छ, काशहृद (वर्तमान कायंद्रा) से काशहदगच्छ आदि । यहां संडेरगच्छ के सम्बन्ध में यथाज्ञात साक्ष्यों के आधार पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है
I
संडेरगच्छ चैत्यवासी आम्नाय के अन्तर्गत था । यह गच्छ १०वीं शती के लगभग अस्तित्व में आया । ईश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। उनके शिष्य एवं पट्टधर श्री यशोभद्रसूरि गच्छ के महाप्रभावक आचार्य हुए। संडेरगच्छीय परम्परा के अनुसार यशोभद्रसूरि के पश्चात् उनके पट्टधर शालिसूरि और आगे क्रमशः सुमतिसूरि, शांतिसूरि और ईश्वरसूरि (द्वितीय) हुए। पट्टधर आचार्यों के नामों का यह क्रम लम्बे समय तक
चलता रहा ।
संडेरगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये हमारे पास मूलकर्ता के ग्रन्थ की प्रतिलिपि कराने वाले गृहस्थों की प्रशस्तियां एवं स्वगच्छीय आचार्यों के रचनाओं की प्रशस्तियां सीमित संख्या में उपलब्ध हैं । इनके अतिरिक्त राजगच्छीयपट्टावली (रचनाकाल वि० सं० १६वीं शती लगभग) एवं वीरवंशावली (रचनाकाल वि० सं० १७वीं शती लगभग) से भी इस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org