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________________ ६८६ — जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास नाम रत्नशेखरसूरि और प्रगुरु का नाम हेमतिलकसूरि दिया गया है । रत्नशेखरसूरि द्वारा रचित सिरिवालचरिय (श्रीपालचरित्र) रचनाकाल वि० सं० १४२८/ई० स० १३७२; लघुक्षेत्रसमास स्वोपज्ञवृत्ति, गुरुगुणषट्त्रिंशिका, छंदकोश, सम्बोधसत्तरीसटीक, लघुक्षेत्रसमाससटीक आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं । सिरिवालचरिय की प्रशस्ति५ में उन्होंने अपने गुरु, प्रगुरु, शिष्य तथा रचनाकाल आदि का निर्देश किया है, जो इस प्रकार है: सिरिवज्जसेणगणहरपट्टप्पहूहेमतिलयसूरीणं। सीसेहिं रयणसेहरसूरीहिं इमा ऊण संकलिया ।। ३८॥ तस्सीसहेमचंदेण साहुणा विक्कमस्स वरसंमि। चउदस अट्ठावीसे लिहिया गुरुभत्तिकलिएणं ॥३९॥ वज्रसेनसूरि हेमतिलकसूरि रत्नशेखरसूरि हेमचन्द्र यह उल्लेखनीय है कि रत्नशेखरसूरि ने उक्त प्रशस्ति में अपने गच्छ का निर्देश नहीं किया है। यही बात उनके द्वारा रचित अन्य कृतियों में भी देखी जा सकती है। वि० सं० १४२२ के एक प्रतिमालेख में तपागच्छीय? किन्हीं रत्नशेखरसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु उपदेशक के रूप में नाम मिलता है । यहि हम इस वाचना को सही मानें तो उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित रत्नशेखरसूरि को समसामयिकता और नाम साम्य के आधार पर उक्त प्रसिद्ध रचनाकार रत्नशेखरसूरि से समीकृत किया जा सकता है। एक रचनाकार द्वारा अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में अपने गुरु, प्रगुरु, शिष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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