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________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ३. पंचविंशतिक्रियासंझाय ४. आवश्यकअक्षरप्रमाणसंझाय ५. शत्रुंजयमंडनपार्श्वनाथस्तवन ६. शांतिनाथजिनस्तवन ७. ब्रह्मचारी ८. उपदेशसाररत्नकोश ९. ऋषभस्तव १०. कल्याणस्तव ११. शंखेश्वरस्तव १२. नेमिस्तव अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में इन्होंने अपने गुरु पार्श्वचन्द्रसूरि का सादर स्मरण किया है । ४ पार्श्वचन्द्रसूरि के दूसरे शिष्य विनयदेवसूरि हुए जिनसे सुधर्मगच्छ अस्तित्व में आया । विनयदेवसूरि के प्रशिष्य मनजी ऋषि ने वि०सं० १६४६ में विनयदेवसूरिरास की रचना की । पार्श्वचन्द्रगच्छ से सम्बद्ध अन्य साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण इस प्रकार है । सम्यकत्त्वकौमुदीरास - वि० सं० १६४२ में रची गयी इस कृति के रचनाकार के रूप में वच्छराज नामक मुनि का उल्लेख मिलता है । मरु- गूर्जर भाषा में रचित उक्त कृति की प्रशस्ति' में रचनाकार ने अपने गच्छ, गुरुपरम्परा, रचनाकाल आदि का सुन्दर विवरण दिया है, जो निम्नानुसार है : पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचन्द्रसूरि ८१३ Jain Education International वाचक रत्नचारित्र रत्नचारित्र ऋषि वच्छराज For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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