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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास (वि०सं० १६४२ में सम्यकत्त्वकौमुदीरास के रचनाकार)
ऋषि वच्छराज द्वारा रचित नीतिशास्त्रपंचाख्यान अपरनाम पंचतंत्रचोपाई (रचनाकाल वि०सं० १६४८) नामक एक अन्य कृति भी प्राप्त होती है।
पार्श्वचन्द्रसूरिना ४२ दोहा - पार्श्वचन्द्रगच्छीय जयचन्द्रसूरि द्वारा रचित इस कृति की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है :
पार्श्वचन्द्र पट्टोधरण, रामचंद्र गुरु सूर, परेत गुरुने पालीया पंच महाव्रत पूर । समरचंद्र गुरु सारिखा, राजचंद्र तिणरात, खडगधार चारित्र खरो चढे धरा लग बात । गच्छधोरी गाजे गुहिर विमलचंद्र वडवार, पट्टोधरण प्रगटीयो जयचंद्र जगे आधार । जे राजा परजाह जे सहुके नामे शीष, जयचंद आयो जोधपुर पुगी सवहि जगीस।
अर्थात्
पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि राजचंद्रसूरि विमलचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि (वि०सं० १७वीं शती के तृतीय चरण आस-पास
__पार्श्वचन्द्रसूरिना सैंतालिस-दोहा के रचनाकार) इनके द्वारा रचित राजरत्नरास (वि०सं० १६५४), रायचन्द्रसूरिरास आदि कृतियां भी मिलती हैं।
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