________________
पार्श्वचन्द्रगच्छ
८१५ आरामशोभाचरित्र के रचनाकार पूंजाऋषि भी इसी गच्छ के थे। अपनी उक्त कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा एवं रचनाकाल आदि का निर्देश किया है, जो इस प्रकार है :
पार्श्वचन्द्रसूरि समरचन्द्रसूरि रायचन्द्रसूरि हंसचन्द्रसूरि पूंजाऋषि (वि०सं० १६५२ /ई०स० १५९६ में आरामशोभाचरित्र
के रचनाकार) वि०सं० १६६३/ई० सन् १६०७ में रचित अंजनासुन्दरीरास की प्रशस्ति° से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार विमलचारित्र भी इसी गच्छ से सम्बद्ध थे। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो निम्नानुसार है :
पार्श्वचन्द्रसूरि
समरचन्द्रसूरि राजचन्द्रसूरि वाचक रत्नचारित्र
विमलचारित्र (वि०सं० १६६३/ई०स०
१६०७ में अंजनासुन्दरीरास के रचनाकार) वि०सं० १६६४/ई०स० १६०८ में रची गयी नलदमयन्तीरास के रचनाकार मेघराज ने भी स्वयं को पार्श्वचन्द्रगच्छ के मुनि के रूप में उल्लिखित किया है। इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल आदि का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org