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पार्श्वचन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
श्वेताम्बर परम्परा में समय-समय पर अस्तित्व में आये विभिन्न गच्छों में नागपुरीयतपागच्छ भी एक है। इस गच्छ की पट्टावलियों के अनुसार वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि द्वारा नागौर में उग्र तप करने के कारण वहां के शासक द्वारा उन्हें 'तपा' विरुद् प्रदान किया गया । धीरे-धीरे उनकी शिष्य सन्तति इसी आधार पर नागपुरीयतपागच्छ के नाम से विख्यात् हुई। इस गच्छ में कई विद्वान् और प्रभावशाली मुनिजन हो चुके हैं। इसी गच्छ में वि० सम्वत् की १६वीं शती के अंतिम चरण में हुए आचार्य हेमहंससूरि की परम्परा में हुए आचार्य साधुरत्नसूरि के शिष्य पार्श्वचन्द्रसूरि अपने समय के एक प्रखर विद्वान् और प्रभावशाली जैन आचार्य थे । उनके द्वारा रची गयी अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियां मिलती हैं । उनके पश्चात् इनकी शिष्यसंतति इन्हीं के नाम पर पार्श्वचन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई और आज भी इस परम्परा के अनुयायी मुनिजन एवं साध्वियां विद्यमान हैं Į
पार्श्वचन्द्रगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये आवश्यक साहित्यिक एवं अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा रचित ग्रन्थों की प्रशस्तियों तथा उनके प्रेरणा से लिखवायी गयी या स्वयं अध्ययनार्थ लिखे गये ग्रन्थों की प्रशस्तियों के साथ-साथ इस गच्छ की तीन पट्टावलियाँ भी मिलती हैं । इन सब के साथ-साथ इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं, जो विक्रम सम्वत् की १८वीं शती से लेकर वि०सं० की २०वीं शती तक के हैं । साम्प्रत निबन्ध में उन सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत
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