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पूर्णतल्लगच्छ
13.
१४.
१५.
९२९
H. D. Velankar - Jinaratnakosa, Government Oriental Series, Class C, No. 4, Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona - 1944 A.D., P-312-13
मूलशुद्धिप्रकरण के चार स्थानक देवचन्द्रसूरि कृत वृत्ति के साथ श्री अमृतलाल मोहनलाल भोजक द्वारा सम्पादित और प्राकृत टेक्ट सोसायटी अहमदाबाद द्वारा ई० सन् १९७१ में प्रकाशित हो चुके हैं। शेष भाग अभी भी अप्रकाशित ही है ।
Muni Punyavijaya - A New Catalogue of Samskrit and Prakrit Mss : Jesalmer Collection, P.60.
Muni Punyavijaya - Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Santinatha Jain Bhandar, Cambay, GO. S. No. 135 - 149, Baroda, 1961-66 A.D. Pp 158, 163, 168, 180.
द्रष्टव्य संदर्भ संख्या २.
१६.
१७. गुलाबचन्द्र चौधरी, जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भाग-६, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २०, वाराणसी १९७३ ई०, पृष्ठ ८६.
१८. एकारसहिं सएहिं विक्कमसंवच्छराउ सट्ठेहिं ।
इयं खंभाइत्थे रज्जे जयसिंघरायस्स ॥
C. D. Dalal
A Descriptive Catalogue of Mss In the Jaina Bhandars at Pattan P. 339.
शांतिनाथचरित अद्यावधि अप्रकाशित है।
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१९. बुहलर, पूर्वोक्त.
२०.
R.C. Parikha An Introduction of Kavyanusasana, Vol. II, Part I, Bombay 1938, PP. I-CCCXXX. वि० भा० मुसलगांवकर आचार्य हेमचन्द्र, भोपाल १९७१ ई०, पृष्ठ ५ और आगे.
२१. मोतीचन्द गिरधरलाल कापडिया - 'श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यनी कृतियो' श्री हेम सारस्वत सत्र, पाटण, अहेवाल अने निबंध संग्रह, बम्बई १९४९ ई०, पृष्ठ १७७-१९१.
संपा० नलविलास,
२२. जी० के० श्रीगोन्डेकर एवं लालचन्द्र भगवानदास गांधी बड़ोदरा १९२६ ईस्वी, प्रस्तावना, पृष्ठ २३, और आगे.
२३. वही, पृष्ठ ३२.
२४. सांडेसरा, पूर्वोक्त, पृष्ठ ७-८ .
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