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________________ पार्श्वचन्द्रगच्छ ८१७ रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य कर्मचन्द्र द्वारा वि०सं० १७३०(७) में रचित रोहिणीअशोकचंद्र चौपाई नामक कृति प्राप्त होती है, जिसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपने प्रगुरु, गुरु, गुरुभ्राता आदि का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : जयचन्द्रसूरि प्रमोदचन्द्र पद्मचन्द्रसूरि कर्मचन्द्र मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १७३०(७) में रोहिणीअशोकचन्द्र चौपाई के रचनाकार) इस गच्छ की पट्टावलियों में भी जयचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में पद्मचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। जयचन्द्रसूरि के एक अन्य शिष्य हीरचंद्र हुए जिनके द्वारा रचित यद्यपि कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके प्रशिष्य लक्ष्मीचंद्र द्वारा रचित गणसारिणी (रचनाकाल वि०सं० १७६०) नामक कृति मिलती है, जिसकी प्रशस्ति५ में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : जयचन्द्रसूरि हीरचंद्रसूरि जगच्चन्द्रसूरि लक्ष्मीचंद्रसूरि (वि०सं० १७६० में गणसारिणी के कर्ता) उक्त साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परंपरा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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