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________________ १२७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास वि० सं० ११८२/ई० सन् ११२६ का है, जो राधनपुर स्थित जिनालय के एक पंचतीर्थी जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इस लेख में सरवालगच्छ के एक श्रावक शिष्य द्वारा आत्मश्रेयार्थ उक्त प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। सं० ११८२ श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराचार्यसंताने वरुणाग सुत प्ररम (परम) ब्रह्मदेवभार्यमा लाहितगतपुत्रिया सीतया च आत्मश्रेयो) कारिता ॥ इस गच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० ११९४ /ई० सन् ११३८ का है। यह लेख भी वढवाण स्थित बड़े जैन मंदिर में एक परिकर के नीचे उत्कीर्ण है। इस लेख में सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के एक श्रावकशिष्य देवानन्द द्वारा अपनी माता के श्रेयार्थ विमलनाथ की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। मुनि विजयधर्मसूरि ने इस लेख की वाचना निम्न प्रकार से दी ___ सं. ११९४ माघ सुदि ६ भू (भौ) मे श्रीवर्धमानपुरे श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराचार्यसंताने ठ० देवानन्देन स्वमातुः सज्जणिश्रेयोर्थं श्रीविमलनाथप्रतिमा कारापिता ॥ सरवालगच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० १२०८ / ई० सन् ११५२ का है। यह लेख भी वढवाण स्थित बड़े जैन मंदिर में एक परिकर के नीचे उत्कीर्ण है । इस लेख में सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के श्रावक शिष्य नेमिकुमार की भार्या लक्ष्मी द्वारा आत्मश्रेयार्थ जिनप्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। विजयधर्मसूरि के अनुसार लेख का मूलपाठ इस प्रकार है : संवत १२०८ ज्येष्ठ (ष्ठ) सुदि २ बुधे श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराचार्य संताने वोहासुतवता नेमिकुमारेण भार्या लक्ष्मी आत्मश्रेयोर्थं प्रतिमा कारिता । सरवालगच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १२०८/ ई० स० १९५२ का एक अन्य लेख भी मिला है, जो जैसलमेर स्थित चन्द्रप्रभजिनालय की एक चौबीसी जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख से ज्ञात होता है कि सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के एक श्रावकशिष्य द्वारा यह प्रतिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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