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________________ सरवालगच्छ १२७५ आत्मश्रेयार्थ बनवायी गयी । पूरनचन्द नाहर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है: सं० १२०८ श्रीसरवालगच्छे श्रीजिनेश्वराचार्यैः वालचंद किसुणारीमातृ महणीश्रेयसे कारिता ॥ इस गच्छ से सम्बद्ध अगला लेख वि० सं० १२९२ /ई० सन् ११५६ का है, जो वढवाण स्थित बड़े जैन मंदिर में एक परिकर के नीचे उत्कीर्ण है।° इस लेख में भी सरवालगच्छीय जिनेश्वराचार्य के एक श्रावकशिष्य द्वारा अपनी माता के श्रेयार्थ वासुपूज्य की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। लेख की वाचना इस प्रकार है। सं० १२१२ माघ सुदि ११ श्रीवर्धमानपुरे श्रीसरवालगच्छे श्री जिनेश्वराचार्यसंताने आमचंडसुतेन वोसिना मातुः मोहिणिश्रेयो) श्रीवासुपूज्य प्रतिमा कारिता ॥ सरवालगच्छ से सम्बद्ध एक प्रतिमालेख वि०सं० १२२६/ ई० सन् ११७० का भी है। यह प्रतिमा आज जैसलमेर स्थित महावीरजिनालय में है जिसे सरवालगच्छीय वर्धमानाचार्य के एक श्रावकशिष्य द्वारा आत्मकल्याणार्थ बनवाया गया । नाहर ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : ॐ सं० १२२६ माघ सुदि १३ गुरौ श्रीसरवालगच्छे श्रीवर्धमानाचार्यसंताने रावड पुत्र माणु तथा भार्या वालेवि (?) सहितेन सुत देदा कवडि आलणकेन आत्मश्रेयो) कारिता ॥ ___ इसके अलावा वि० सं० १२५१/ई० सन् ११९५ का भी एक लेख इस गच्छ से सम्बद्ध है। यह लेख राधनपुर स्थित जैन मंदिर में रखी धातु की एक परिकर की गादी के नीचे उत्कीर्ण है । इस लेख में सरवालगच्छीय वर्धमानाचार्य के एक श्रावकशिष्य द्वारा अपने कुटुंब के श्रेयार्थं शांतिनाथ की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है। मुनि विशालविजय ने उक्त लेख का मूलपाठ इस प्रकार दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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