________________
सरवालगच्छ
१२७३
रखी एक धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। मुनि विशालविजय के अनुसार इस लेख की वाचना इस प्रकार है :
सं० १९४९ माघ वदि ४ श्रीसरवालगच्छे वर्धमानाचार्य संताने श्रीकुपांगजनागेनात्मश्रेयोर्थं कारिता ॥
इस लेख में वर्धमानसूरि के संतानीय अर्थात् श्रावकशिष्य द्वारा प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है । सरवालगच्छ के किसी आचार्य का उल्लेख करने वाला यह सर्वप्रथम लेख है, अतः महत्त्वपूर्ण है । इस गच्छ से सम्बद्ध वि० सं० ११५९ / ई० सन् ११०३ और वि० सं० ११६४ / ई० सन् १९०८ के लेख, जो राधनपुर स्थित जिनालय की धातु प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेकिन इनमें इस गच्छ के किसी आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं मिलता । मुनि विशालविजय ने इन लेखों की वाचना इस प्रकार दी है :
सं० ११५९ श्रीसरवालगच्छे सूहनश्राविकया सोमति दुहितृश्रेयो कारितः ॥
सं० ११६४ फाल्गुन सु० ७ गुरौ सरवालगच्छे श्रावक मोहलाकेन कारिता ॥
इस गच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १९७४ / ई० सन् १९१८ का एक लेख वढवाण स्थित बड़े जैन मंदिर में एक परिकर के नीचे उत्कीर्ण है। इस लेख का कुछ अंश घिस जाने से नष्ट हो गया है। विजयधर्मसूरि^ ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है :
संवत् ११७४ फाल्गुन वदि ४ श्रीसरवालसंस्थितगच्छप्रतिपालकश्रीजिनेश्वराचार्ये श्रीवर्धमानपुरे परि० महणसुत.
. कन
देव श्रेयार्थं श्रीसीतलदेवप्रतिमा कारिता ||
इस लेख में सरवालगच्छीय जिनेश्वरसूरि के श्रावकशिष्य द्वारा शीतलनाथ की प्रतिमा बनवाने का उल्लेख है ।
कालक्रम की दृष्टि से इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अगला लेख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org