SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागेन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास उत्तर भारतीय निर्ग्रन्थ संघ के अल्पचेल (बाद में श्वेताम्बर) सम्प्रदाय के अन्तर्गत नागेन्द्रकुल (बाद में नागेन्द्रगच्छ) का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था | अब से लगभग ४०० वर्ष पूर्व तक विद्यमान इस गच्छ की उत्पत्ति कोटिक गण के नाइल ( नागिल्य – नागेन्द्र) शाखा से हुई, ऐसा माना जाता है । पर्यूषणाकल्प' की ' स्थविरावली' (जिसका प्रारम्भिक भाग ई० सन् १०० के बाद का माना जाता है) के अनुसार आर्यवज्र के प्रशिष्य और आर्य वज्रसेन के शिष्य आर्य नाइल से नाइली शाखा का उद्भव हुआ' । देववाचककृत नन्दीसूत्र की 'स्थविरावली' (रचनाकाल प्रायः ई० सन् ४५०) ४ में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है तथापि वहाँ इसे नाइलकुल कहा गया है।' ऐसा मालूम होता है कि पाँचवी - छठीं शताब्दी से कुछ शाखाएँ कुल कहलाने लगी थीं और गुप्तयुग के पश्चात् तथा मध्ययुग के प्रारम्भपूर्व तथा मध्युग की शुरुआत में नागेन्द्रकुलरूपेण ही उल्लेख प्राप्त होता है और इससे सम्बद्ध साक्ष्य मिलने लगते हैं । नन्दीसूत्र की ' स्थविरावली' में आर्य नागार्जुन (जिनकी अध्यक्षता में ई० सन् की चतुर्थ शताब्दी के तृतीय चरण में आगम ग्रन्थों के संकलन के लिये वलभी में वाचना हुई थी) और उनके शिष्य आर्य भूतदिन्न को नाइलकुल का बतलाया गया है । आर्य नाइल के पश्चात् और आर्य नागार्जुन के पूर्व इस कुल में कौन-कौन से आचार्य हुए इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है । ठीक यही बात आर्य भूतदिन्न के पट्टधर परम्परा के विषय में भी कही जा सकती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy