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पूर्णिमागच्छ दर्शनशुद्धिबृहद्वृत्ति -
पूर्णिमागच्छीय विमलगणि के शिष्य देवभद्रसूरि ने वि० सं० १२२४/ ई० सन् ११६८ में अपने गुरु की कृति दर्शनशुद्धिवृत्ति पर बृहद्वृत्ति की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी
जयसिंहसूरि
चन्द्रप्रभसूरि
समन्तभद्रसूरि
धर्मघोषसूरि
विमलगणि
देवभद्रसूरि [वि० सं० १२२४ /ई० सन् ११६८ __ में दर्शनशुद्धिबृहद्वृत्ति के
रचनाकार] प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति -
यह पूर्णिमागच्छीय हेमप्रभसूरि की कृति है। रचना के अंत में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है:
चन्द्रप्रभसूरि
धर्मघोषसूरि
यशोघोषसूरि
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