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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
की प्रशस्तियों, गच्छ के विद्यानुरागी मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपि की प्रशस्तियां तथा पट्टावलियां प्रमुख हैं। अभिलेखीय साक्ष्यों के अर्न्तगत इस गच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की चर्चा की जा सकती है। यहां उक्त साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छ के इतिहास पर संक्षिप्त रूप में प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है । अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है :
दर्शनशुद्धि -
यह पूर्णिमागच्छ के प्रकटकर्ता आचार्य चन्द्रप्रभसूरि की कृति है । इनकी दूसरी रचना है - प्रमेयरत्नकोश । इन रचनाओं में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख तो नहीं किया है, परन्तु इनके प्रशिष्य विमलगणि ने अपने दादागुरु की रचना पर वि० सं० १९८१ / ई० सन् ११२५ में वृत्ति लिखी, जिसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है' वह इस प्रकार है :
सर्वदेवसूरि
I
जयसिंहसूरि
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1 चन्द्रप्रभसूरि
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धर्मघोषसूरि
I विमलगणि
[ दर्शनशुद्धि के रचनाकार ]
[वि० सं० १९८१ / ई० सन् ११२५ में दर्शनशुद्धिवृत्ति के रचनाकार ]
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