________________
हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ
१३३९
३९
स्याद्वादकलिका, रत्नकरावतारिकापंजिका, कौतुककथा और नेमिनाथफागु की भी रचना की । १ वि० सं० १३८६ से वि० सं० १४१५ तक इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ५ उपलब्ध जिनप्रतिमाओं का पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है।
इनके शिष्य सुधाकलश द्वारा रचित दो कृतियाँ मिलती हैं, इनमें प्रथम हैं संगीतोपनिषद्सारोद्धार जो वि० सं० १४०६ / ईस्वी सन् १३५० में रचा गया है । इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थकार द्वारा वि० सं० १३८० / ई० सन् १३२४ में लिखी गयी संगीतोपनिषद् का संक्षिप्त रूप है। ५० गाथाओं में रचित एकाक्षरनामाला इनकी दूसरी उपलब्ध कृति है ।
सन्दर्भ सूची :
१.
Muni Punya Vijaya Catalogue of Palm Leaf Mss in the Shanti Natha Jaina Bhandara, Cambay, Vol. I, G. O. S. No. 135, Baroda, 1961, A.D. Pp. 66-67.
२.
३.
४.
५.
६.
P. Peterson Fifth Report of Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, Bombay 1896 A.D. pp. 88-89.
C.D. Dalal A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandars at Pattan, Vol. I. G. O. S. No. LXXVI, Baroda 1937 A. D. pp. 311-313.
मुनिसुव्रतस्वामिचरित, संपा० पं० रूपेन्द्रकुमार पगारिया, लालभाई दलपतभाई ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १०६, अहमदाबाद १९८९ ईस्वी, पृष्ठ ३३७-३४१.
सुपासनाहचरिय, संपा० पं० हरगोविन्ददास, जैन विविध साहित्य शास्त्रमाला, ग्रन्थांक १२, बनारस १९१८ ई०, प्रशस्ति.
Muni Punya Vijaya : Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti Natha Jaina Bhandara, Cambay, Vol. II, GO.S., No. 149, Baroda 1966 A.D. Pp. 243-244.
Ibid, Pp. 374-376.
Muni Punya Vijaya
New Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Jesalmer Collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad
1972 A.D. Pp. 177.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org