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________________ १३३८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास इन्होंने १५ तरंगों में कथारत्नसागर की रचना की । इसमें तप, दान, अहिंसा आदि सम्बन्धी कथायें दी गयी हैं । इसका एक नाम कथारत्नाकर भी मिलता है । वि० सं० १३१९ में लिखी गयी इस ग्रन्थ की एक प्रति पाटण के संघवीपाड़ा ग्रन्थभंडार में संरक्षित है। इसके अतिरिक्त इन्होंने प्राकृतप्रबोधदीपिका, अनर्घराघवटिप्पण, ज्योतिषसार अपरनाम नारचन्द्रज्योतिष, साधारणजिनस्तव आदि की भी रचना की और अपने गुरु देवप्रभसूरि के पाण्डवचरित तथा नागेन्द्रगच्छीय उदयप्रभसूरि के धर्माभ्युदयमहाकाव्य का संशोधन किया। महामात्य वस्तुपाल के वि० सं० १२८८ के गिरनार के दो लेखों के पद्यांश तथा २६ श्लोकों की वस्तुपालप्रशस्ति भी इन्होंने ही लिखी है। ३३ नरेन्द्रप्रभसूरि ये मलधारी नरचन्द्रसूरि के शिष्य एवं पट्टधर थे । महामात्य वस्तुपाल के अनुरोध एवं अपने गुरु के आदेश पर इन्होंने वि० सं० १२८० में अलंकारमहोदधि की रचना की। यह आठ तरंगों में विभक्त है। इसके अन्तर्गत कुल ३०४ पद्य हैं। यह अलंकार - विषयक ग्रन्थ है । वि० सं० १२८२ में इन्होंने अपनी उक्त कृति पर वृत्ति की रचना की जो ४५०० श्लोक परिमाण है । ३५ इसके अतिरिक्त विवेककलिका, विवेकपादप, वस्तुपाल की क्रमशः ३७ और १०४ श्लोकों की प्रशस्तियों ३६ तथा वस्तुपाल द्वारा निर्मित गिरनार स्थित आदिनाथ जिनालय के वि० सं० १२८८ के एक शिलालेख का पद्यांश भी इन्हीं की कृति है । राजशेखरसूरि I राजशेखरसूरि मलधारी नरेन्द्रप्रभसूरि के पट्टधर पद्मतिलकसूरि के प्रशिष्य तथा श्रीतिलकसूरि के शिष्य थे । न्यायकंदलीपंजिका (वि० सं० १३८५/ई० सन् १३२९); प्राकृतद्वयाश्रयवृत्ति (वि० सं० १३८६ / ई० सन् १३३०) तथा प्रबन्धकोश अपरनाम चतुर्विंशतिप्रबन्ध (वि० सं० १४०५ / ई० सन् १३४९) इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं । इनके अतिरिक्त इन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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