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हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ
लक्ष्मणगणि
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आप भी मलधारी आचार्य हेमचन्द्रसूरि के शिष्य थे। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है इन्होंने वि० सं० १९९९ / ई० सन् १९४३ में प्राकृत भाषा में सुपासनाहचरिय की रचना की । इसके अतिरिक्त इन्होंने अपने गुरु को विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति के लेखन में सहायता दी । २८ यह बात उक्त ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होती है ।
देवभद्रसूरि
१३३७
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है ये श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने अपने गुरु की कृति संग्रहणीरत्नसूत्र पर वृत्ति की रचना की । न्यायावतारटिप्पनक और बृहत्क्षेत्रसमासटिप्पणिका (रचनाकाल वि० सं० १२३३ / ई० सन् ११७७) भी इन्हीं की कृति है ।
देवप्रभसूरि
.३०
ये मलधारी श्रीचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य थे । इनके द्वारा रचित पाण्डवचरित का पूर्व में उल्लेख किया गया है। २९ इसमें १८ सर्ग हैं। इसका कथानक लोकप्रसिद्ध पाण्डवों के चरित्र पर आधारित है, जो कि जैन परम्परा के अनुसार वर्णित है । यह एक वीररस प्रधान काव्य है | पाण्डवचरित के कथानक का आधार षष्ठांगोपनिषद् त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित तथा कुछ अन्य ग्रन्थ हैं, यह बात स्वयं ग्रन्थकर्ता ने ग्रन्थ के १८वें सर्ग के २८० वें पद्य में कही है। इसके अतिरिक्त मृगावतीचरित अपरनाम धर्मशास्त्रसार, सुदर्शनाचरित, काकुस्थकेलि आदि भी इन्हीं की कृतियाँ हैं ।
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नरचन्द्रसूरि
जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है ये मलधारी देवप्रभसूरि के शिष्य और महामात्य वस्तुपाल के मातृपक्ष के गुरु थे। ये कई बार वस्तुपाल के साथ तीर्थयात्रा पर भी गये थे । महामात्य के अनुरोध पर
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