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________________ ११७२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ? धर्मघोषसूरि सोमदेवसूरि T धनचन्द्रसूरि T धर्मचन्द्रसूरि Jain Education International [वि० सं० १४८० - १५१०] छह प्रतिमालेख [वि० सं० १५३४ - १५४५ ] चार प्रतिमालेख इस शाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह शाखा कब अस्तित्व में आयी, इस बारे में प्रमाणों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है । अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर वि० सं० की १५वीं शताब्दी के मध्य से वि० सं० की १६वीं शताब्दी के मध्य तक इस शाखा का अस्तित्व सिद्ध होता है। T कमलचन्द्रसूरि [वि० सं० १३ (४) ५०] [वि० सं० १३ ( ४ ) ५०] एक प्रतिमालेख [वि० सं० १४६३] एक प्रतिमालेख जाखड़ियाशाखा मडाहडागच्छ की इस शाखा का उल्लेख करने वाले ५ प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं । इनमें कमलचन्द्रसूरि, आनन्दमेरु तथा गुणचन्द्रसूरि का नाम मिलता है । इनका विवरण इस प्रकार है : कमलचन्द्रसूरि वि० सं० १५३५ माघ वदि ६, मंगलवार वि० सं० १५४७ ज्येष्ठ सुदि २, मंगलवार अर्बुदप्राचीन- लेखांक ६५५ जैनलेखसंदोह बीकानेरजैन- लेखांक १११२ लेखसंग्रह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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