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मडाहडागच्छ
११७३
वि० सं० १५५७ वैशाख सुदि ११, प्रतिष्ठालेख - लेखांक ८९१
संग्रह, भाग १
बीकानेरजैन- लेखांक २७५१
लेखसंग्रह
वही
लेखांक १६३०
गुरुवार
वि० सं० १५७५ कें लेख " में मडाहडागच्छ की शाखा के रूप में नहीं अपितु स्वतन्त्र रूप से जाखड़ियागच्छ के रूप में इसका उल्लेख मिलता है।
गुरुवार
वि० सं० १५६० वैशाख सुदि ३,
बुधवार
वि० सं० १५७१ फाल्गुन वदि ४,
इस शाखा के भी प्रवर्तक कौन थे तथा यह कब और किस कारण से अस्तित्व में आयी, इस बारे में आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
सन्दर्भ सूची :
१.
२.
३.
बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति [ रचनाकाल वि० सं० १२३८ / ईस्वी सन् १९८२ ] की प्रशस्ति. Muni Punya Vijaya - Catalogue of Plam Leaf Mss in the Shanti Nath Jain Bhandar, Cambay, G.O.S. No. 149, Baroda, 1966 A.D., pp. 284-286.
तपागच्छीय मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावलि [ रचनाकाल वि० सं० १४६६ / ईस्वी सन् १४०९]
तपागच्छीय हीरविजयसूरि के शिस्य धर्मसागर द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली [ रचनाकाल वि० सं० १६४८ / ईस्वी सन् १५९२].
इस सम्बद्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य पं. दलसुख मालवणिया अभिनन्दनग्रन्थ ( वाराणसी १९९२) में पृष्ठ १०५ - ११७ पर प्रकाशित "बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास" नामक लेख तथा इसी पुस्तक से अन्तर्गत "बृहदगच्छका संक्षिप इतिहास" मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, बम्बई १९६१ ईस्वी, पृ० ५२-५५. मुनिजयन्तविजय - अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर वि० सं० २००४, पृ० ६७-७७.
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