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________________ मडाहडागच्छ ११७१ धर्मचन्द्रसूरि के पट्टधर कमलचन्द्रसूरि- इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ४ प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं । इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं : वि० सं० १५३४ ज्येष्ठ सुदि १०, बीकानेरजैन- लेखांक १०८१ सोमवार लेखसंग्रह वि० सं० १५३५ आषाढ़ सुदि ५, वही लेखांक १०९१ गुरुवार वि० सं० १५४१ आषाढ़ सुदि ३, वही लेखांक १३९० शनिवार वि० सं० १५४५ माघ सुदि ३, वही लेखांक २४१३ गुरुवार वि० सं० १५५७ के एक प्रतिमालेख में इस शाखा के गुणचन्द्रसूरि एवं उपाध्याय आनन्दसूरि का उल्लेख मिलता है ।१५ रत्नपुरीयशाखा का उल्लेख करनेवाला यह अन्तिम साक्ष्य है। रत्नपुरीयशाखा के उक्त प्रतिमालेखों में प्रथम [वि० सं० १३५०] और द्वितीय [वि० सं० १४६३] लेख में सोमदेवसूरि का उल्लेख मिलता है । प्रथम लेख में वे प्रतिमाप्रतिष्ठापक हैं तथा द्वितीय लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के गुरु । किन्तु दोनों सोमदेवसूरि के बीच प्रायः १०० सेअधिक वर्षों का अन्तराल है । अतः इस आधार पर दोनों अलग-अलग व्यक्ति सिद्ध होते हैं । यहाँ यह भी विचारणीय है कि इन सौ वर्षों में [वि० सं० १३५० से वि० सं० १४६३] इस शाखा से सम्बद्ध कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अतः यह सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि दोनों सोमदेव एक ही व्यक्ति हैं और लेख के वाचनाकार की मूल से वि० सं० १४५० की जगह वि० सं० १३५० लिख दिया गया। इस संभावना को स्वीकार कर लेने पर रत्नपुरीयशाखा की वि० सं० १४५० से वि० सं० १५५७ की की एक अविच्छिन्न परम्परा ज्ञात हो जाती है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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