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पूर्णिमागच्छ
९३९ के ग्रन्थभंडार में संरक्षित है । रचना के अन्त में प्रशस्ति के अर्न्तगत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत परिचय न देते हुए मात्र अपने गुरु का ही नामोल्लेख किया है :
गुणसमुद्रसूरि
सत्यराजगणि [वि०सं० १५१४/ई० सन्
१४५८ में श्रीपालचरित
के रचनाकार पूर्णिमागच्छगुर्वावली -
यह गुर्वावली पूर्णिमागच्छ के सुमतिरत्नसूरि के शिष्य उदयसमुद्रसूरि द्वारा वि० सं० १५८०/ई० सन् १५२४ में रची गयी है । इसमें उल्लिखित पूर्णिमागच्छ के आचार्यों का क्रम निम्नानुसार है : चन्द्रगच्छीय चन्द्रप्रभसूरि [पूर्णिमागच्छ के
प्रवर्तक] धर्मघोषसूरि
देवभद्रसूरि
जिनदत्तसूरि
शांतिभद्रसूरि
भुवनतिलकसूरि
रत्नप्रभसूरि
हेमतिलकसूरि
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