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सार्धपूर्णिमागच्छ साहित्यिक और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है : १. श्री शांतिनाथचरित -
वि० सं० १४१२ में लिपिबद्ध की गयी इस कृति की प्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छ के आचार्य अभयचन्द्रसूरि का उल्लेख है। किन्तु वे किसके शिष्य थे, यह बात उक्त प्रशस्ति से ज्ञात नहीं होती। चूंकि सार्धपूर्णिमागच्छ से सम्बद्ध यह सबसे प्राचीन उपलब्ध साहित्यिक साक्ष्य है, इसलिये महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। २. रत्नाकरावतारिकाटिप्पण -
वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि की प्रसिद्ध कृति प्रमाणनयतत्त्वावलोक [रचनाकाल वि० सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५] पर सार्धपूर्णिमागच्छीय गुणचन्द्रसूरि के शिष्य ज्ञानचन्द्रसूरि ने मलधारगच्छीय राजशेखरसूरि के निर्देश पर रत्नाकरावतारिकाटिप्पण [रचनाकाल वि० सं० की १५वीं शती के प्रथम या द्वितीय दशक के आसपास] की रचना की । यह बात उक्त कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है। ३. न्यायावतारवृत्ति की दाता प्रशस्ति -
आचार्य सिद्धसेनदिवाकर प्रणीत न्यायावतारसूत्र पर निर्वृत्तिकुलीन सिद्धर्षि द्वारा रचित वृत्ति [रचनाकाल - विक्रम सम्वत् की १०वीं शती के तृतीय चरण के आसपास] की वि० सं० १४५३ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति की दाता प्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छीय अभयचन्द्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि का उल्लेख है। इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि उक्त प्रति रामचन्द्रसूरि के पठनार्थ लिपिबद्ध करायी गयी थी। इन्हीं रामचन्द्रसूरि ने वि० सं० १४९०/ईस्वी सन् १४३४ में विक्रमचरित की रचना की। ४. सम्यकत्वरत्नमहोदधि वृत्ति की दाताप्रशस्ति -
पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक आचार्य चन्द्रप्रभसूरि कृत सम्यकत्वरत्नमहोदधि अपरनाम दर्शनशुद्धि [रचनाकाल विक्रम सम्वत् की १२वीं
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